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स्वराज अभियान महाराष्ट्र के महासचिव, संजीव साने का लेख: सीधा चयन, हानिकारक!

स्वराज अभियान महाराष्ट्र के महासचिव, संजीव साने का लेख: सीधा चयन, हानिकारक!

सीधा चयन, हानिकारक!

हाल ही में केंद्र सरकार ने उपसचिव स्तर के अधिकारियों का सीधा चयन करने का निर्णय लिया है. यह क़दम एक सोची समझी नीति के तहत उठाया गया है. केन्द्रीय सेवाओं में अधिकारी स्तर की सरकारी नौकरी प्राप्त करने के लिए अब तक यू.पी.एस.सी की परीक्षा पास करना जरूरी था. देशभर में लाखो नौजवान ग्रेजुएशन के बाद अपने तीन- चार साल तक लगाकर इस परीक्षा के ज़रिए नौकरी पाने का प्रयास करते हैं. लेकिन केंद्र सरकार के इस निर्णय से इन सब की उम्मीदों पर अब पानी फिर गया है.

इस निर्णय के पक्ष में जो दलील दी जा रही है, उससे यह साफ दिखता है कि कॉरपोरेट कंपनियों में कार्यरत युवा वर्ग को आकृष्ट करने के लिए यह निर्णय लिया गया है. इन पदों का वेतन भी कॉरपोरेट बाजार में चल रहे वेतन पैकेज से मेल खाता है. तर्क यह भी दिया जा रहा है कि प्रतिभावान युवाओं को यूपीएससी जैसी परीक्षा के बंधन में डालना ठीक नही है. क्यों वे पहले से ही इस स्तर पर हैं, और वे देशी विदेशी पूँजीपतियों की अपेक्षा की पूर्ति आसानी कर लेंगे.

लेकिन इसका मकसद साफ़ है. निजीकरण की नीति को सरकारी प्रक्रिया में लाकर सक्रिय नौकरशाहों की फौज खडी की जा रही है, जो सिर्फ सरकार के कुछ वरिष्ठ नौकरशाहों व मंत्रियों के प्रति उत्तरदायी होंगे. जनता के सुख-दुख से उनका कोई संबंध नही होगा.

2003 के बाद जब देश में विशेष आर्थिक ज़ोन की बात चली, और इसके बाद 2005 में जब इससे सम्बंधित कानून बना, तब एक नया चलन देखने को मिला. सरकारी नौकरी से रिटायर होने के बाद बहुत से वरिष्ठ नौकरशाह पूँजीपतियों के पास नौकरी करने लगे; खासकर रेवेन्यू, उद्योग, वन और पर्यावरण मंत्रालयों का अनुभव रखने वाले अधिकारी. कुछ राज्यों ने यह नीति भी अपनाई कि विशेष आर्थिक ज़ोन को सक्रिय करने के लिए सरकारी अधिकारी तीन- चार साल तक पूँजीपतियों के पास नौकरी कर सकेंगे, और बाद में वापस अपने पद पर आकर सरकारी नौकरी जारी रख सकेंगे. कुछ अधिकारी ज्यादा तनख्वाह पाने के लालच में सरकारी नौकरी छोड़कर पूँजीपतियों की सेवा में चले गए.

इन अधिकारियों ने भूमि अधिग्रहण में अपने अनुभव का उपयोग किया. उस वक्त जिला स्तर के अधिकारी बड़े सरकारी अधिकारियोंके दबाव में काम करते थे. अब सरकार ने सीधे चयन की प्रक्रिया को मान्यता देकर, कॉरपोरेट के अनुभव को सरकारी कार्यालय में लाने की ठानी है. राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पूँजीपति इसका स्वागत ही करेंगे, क्योंकि अब इंफ्रास्ट्रक्चर विकास योजना का सीधा संबंध पूंजीनिवेश से है.

देश की मौजूदा व्यवस्था में हर जाति- धर्म के युवा सरकारी नौकरी हासिल कर सकते हैं. इस निर्णय से इस बात पर भी प्रभाव पड़ेगा. खासकर पिछड़े वर्गों के नौजवानों को, जिनका कोई व्यक्तिगत संपर्क नहीं है, और भी कठिन स्थिति से गुजरना होगा; क्योंकि सीधे चयन की प्रक्रिया में कोई आरक्षण नहीं होगा. केंद्रीय सत्ता पर जिस भी पार्टी और विचारधारा विचारधारा का कब्जा होगा (जो आज भाजपा का है), उसके समर्थक ही इस सीधे चयन की प्रक्रिया का फायदा उठाएंगे.

यह देश नौकरशाहों के भरोसे चलता है, लेकिन उन पर संविधान और नियम-कानून का बंधन भी है. अब इस बंधन के हटने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. अब राज्य सरकारें भी स्टेट पब्लिक सर्विस कमीशन को बाईपास करना शुरू करेंगे, जिसके दीर्घकालिक परिणाम अच्छे नही होंगे.

Photo credit: HT Photo


AUTHOR: SANJEEV SANE 
State General Secretary of Swaraj Abhiyan, Maharashtra
He is an eminent political activist with decades of grass-roots work.

sanesanjiv@gmail.com

लेखक के विचार निजी हैं.