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स्वराज अभियान महाराष्ट्र के महासचिव, संजीव साने का लेख: साफ नीयत कहाँ ? सही विकास कहाँ?


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साफ नीयत कहाँ? सही विकास कहाँ?

भाजपा सरकार के चार साल पूरे हुए. इस अवसर पर उन्होंने अपना पुराना नारा ‘सबका साथ, सबका विकास’ छोड दिया, और नए नारे के साथ सामने आए हैं. नया नारा है “साफ नीयत , सही विकास”.

इससे यह स्पष्ट हो गया कि सबका साथ मिले बिना सबका विकास नहीं हो सकता. विगत चार सालों में इस सरकार ने जो नारे बाज़ी की है, वह अभूतपूर्व है. अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतें कम होने के बावजूद पेट्रोल – डीज़ल की कीमतें लगातार बढ़ते रहना, इस सरकार की सब से बड़ी विफलता रही. अब यह स्पष्ट हो गया है कि हर स्तर पर आर्थिक संकट के बावजूद पेट्रोल- डीज़ल से हुए मुनाफे से ही सरकार अपना काम चला रही है. यह भी स्पष्ट हो गया है कि पेट्रोल- डीज़ल के मुनाफे से हो रही इस आमदनी को छोड़ने के लिए राज्य सरकारें भी तैयार नहीं हैं.

इसीलिए जीएसटी के जिस प्रस्ताव का भाजपा हमेशा ज़ोर-शोर से विरोध करती रही, अपनी सरकार बनने पर भाजपा उसी योजना को लेकर आई. एक देश में एक टैक्स का नारा तो दिया गया, लेकिन पेट्रोल और डीज़ल को जीएसटी के दायरे में नहीं लाया गया. इसका सीधा कारण यह है कि जीएसटी में शामिल करने पर पेट्रोल और डीज़ल पर अधिकतम 28 प्रतिशत टैक्स लगता, और उनके दाम 40 रुपये के आसपास रहते. इससे महँगाई भी कम होती, जिसका फायदा सारे देश को मिलता. लेकिन इसमें सरकार की कोई रूचि नहीं है. इसका सीधा कारण यह है कि इससे भाजपा के समर्थक पूंजीपतियों और व्यापारियों का घाटा होता है.

यह दोहरी नीति है. सरकार और सत्ताधारी पार्टी को तो भाजपा समर्थक जनता की फिक्र भी नहीं है. इसलिए कांग्रेस के ज़माने में महँगाई बढ़ने पर, खासकर डीज़ल- पेट्रोल के दाम बढ़ने पर आंदोलन करने वाली और इस मुद्ददे पर संसद न चलने देने वाली भाजपा आज वही तर्क दे रही है, जो पहले कांग्रेस दिया करती थी.

बीते चार सालों की असलियत क्या है ?

· लखनऊ से कानपुर का रेल किराया 45 रूपये था, आज यह 78 रूपये है.

· प्लेटफॉर्म टिकट का मूल्य चार सालों में 3 रूपये से बढ़कर 10 रूपये हो गया है.

· पहले सर्विस टैक्स 12.36 प्रतिशत था, जो आज GST के रूप में 18 से 28 प्रतिशत है.

· एक्साइज ड्यूटी 12 प्रतिशत थी, जो आज 18 प्रतिशत तक हो गई है.

· सभी बड़े उद्योगपतियों की बैलेंस शीट जांची जाए, तो पता चलेगा कि उनकी संपत्ति 2014 के बाद से 3 से 5 गुना तक बढ़ गई है.

· सरकारी बैंकों का NPA (गैर उत्पादक संपत्ति) यानी अर्थात वह राशि, जो बड़े उद्योगपतियो को कर्ज में दी गई, लेकिन चुकता न होने के कारण डूब गई, 2014 में 1.18 लाख करोड़ थी, जो आज 6.42 लाख करोड़ हो गई है. यानी करदाताओं का 6.42 लाख करोड़ रुपया उद्योगपतियो की जेब में चला गया,और बैंकों ने उसे बट्टे-खाते में डाल दिया है.

· चार साल पहले डॉलर का मूल्य 58.57 रूपये था, जो आज 68.50 हो गया है.

· 130 करोड रुपये की गैस सब्सिडी खत्म करवाने के लिए सरकार को 250 करोड़ का विज्ञापन देना पडा. इसी तरह 750 करोड रुपये लगाकर स्वच्छता अभियान का विज्ञापन किया गया, लेकिन सफाई कर्मियों की तनख्वाह और साधन-सुविधा के लिए सरकार के पास पैसे नहीं हैं.

· किसानों की सब्सिडी छीनकर अम्बानी,अडानी जैसे उद्योगपतियों के टैक्स माफ़ किए गए हैं.

· योग दिवस मनाने के लिए सरकार के पास 470 करोड हैं; बाबा रामदेव को हरियाणा में स्कूलों मे योग सिखाने के लिए सालाना 700 करोड हैं , पर स्थाई शिक्षकों की भर्ती के लिए बजट नहीं है. स्कूलो के लिए सरकार के पास पैसे नहीं हैं, इसलिये प्राथमिक शिक्षा के बजट में 20% की कटौती करनी पड़ी.

· कॉरपोरेट्स को टैक्स में छूट देने के लिए सरकार के पास 1,64,000 करोड तो हैं, मगर आत्महत्या कर रहे किसानों की ऋणमुक्ति के लिए 50000 करोड़ नहीं हैं.

· स्किल इंडिया के लिए 200 करोड़ का विज्ञापन बजट रखा गया है, लेकिन विद्यार्थियों की छात्रवृति में 500 करोड़ की कटौती कर दी गई है.

· सरकार घाटे में चल रही है. रेलवे की जमीनें बेचने का टेंडर पास कर दिया है, क्योंकि अडानी और उद्योगपतियों को जमीन देनी हैं.

· विजय माल्या 9000 करोड़ का लोन लेकर विदेश भाग गया. नीरव मोदी 15 हजार करोड़ बैंक से उड़ाकर विदेश ले गया. इसके वापस आने की कोई उम्मीद नहीं है.

· विदेश मे धन भेजने की सीमा 2014 में 75 हजार डॉलर थी, लेकिन भाजपा सरकार के आते ही, एक हफ्ते के अन्दर इस सीमा को बढाकर 125 हजार डॉलर कर दिया गया. अगले साल यानी 26 मई 2015 को यह सीमा बढ़कर 250 हजार डॉलर हो गई. इस छूट का “हवाला कारोबारियो” ने भरपूर फायदा उठाया है, पिछले 11 महीनो मे कई हजार करोड डालर विदेशो मे ट्रांसफर कर दिए गए. अब इस प्रश्न का उत्तर RBI के पास भी नहीं है, कि आखिर इतनी बडी धनराशियाँ विदेशों में क्यों भेजी गई.

इसी दरम्यान नोटबंदी का निर्णय भी लिया गया. यह एक बडा निर्णय था, जिससे देश की सारी जनता प्रभावित हुई. लेकिन इसके अच्छे परिणाम निकलेंगे, यह उम्मीद भी ज्यादा दिनों तक नहीं रही. उलटा नोट बदलने के चक्कर मे कम से कम 110 नागरिकों की लाइन में खड़े-खड़े मृत्यु हो गई.

विकास के नामपर बड़े बड़े कॉरिडोर आ रहे हैं. हजारो हेक्टेयर उपजाऊ ज़मीन का अधिग्रहण किया जा रहा है. 1.8 लाख करोड की लागत से सिर्फ 731 यात्रियों के लिए बुलेट ट्रेन चलाई जा रही है. इस राशि में से भी 44 हजार करोड़ का जापानी क़र्ज़ है.

गाय के नामपर सैकड़ों नौजवानों का कत्ल किया गया, मगर आज भी मांस निर्यात में देश अव्वल है. गोवंश बचाने का नारा देकर भी यह कारखाने क्यों चालू रखे जा रहे हैं? सरकार किसान को गोवंश बचाने के लिए एक पैसा भी नही दे रही है. देश की महिलाओं पर हमले बढ़ रहे हैं. बेटी बचाओ अब यह सिर्फ नारा ही रह गया है. देश का नौजवान रोजगार की तलाश में भटक रहा है.

ज़ाहिर है कि विकास सिर्फ समाज के 10 से 12 प्रतिशत लोगोंका हो रहा है. अच्छे दिन का सपना इन्हीं लोगों के लिए सच हो रहा है. देश की कुल सम्पत्ति बढ़ी है, लेकिन आर्थिक विषमता भी उससे तेज़ गति से बढ़ रही है.

इसका प्रमुख कारण यह है कि सरकार की नीयत और नीति, दोनों ही सही और साफ नहीं हैं. अब कोई नया नारा लगाकर देश की जनता को भ्रमित नही किया जा सकता.

Photo credit: Open Source


AUTHOR: SANJEEV SANE 
State General Secretary of Swaraj Abhiyan, Maharashtra
He is an eminent political activist with decades of grass-roots work.

sanesanjiv@gmail.com

लेखक के विचार निजी हैं.