Press Release
भाजपा घोषणापत्र को स्वराज इंडिया ने बताया हवाहवाई संकल्प विहीन पत्र

भाजपा घोषणापत्र को स्वराज इंडिया ने बताया हवाहवाई संकल्प विहीन पत्र

स्वराज इंडिया
प्रेस नोट- 8 अप्रैल 2018
 
भाजपा घोषणापत्र को स्वराज इंडिया ने बताया हवाहवाई संकल्प विहीन पत्र
 
• घोषणापत्र में न पिछले 5 साल का हिसाब, न अगले 5 साल का भरोसा
 
• भाजपा ने स्वीकार कर लिया है कि बेरोज़गारी पर बोलने का अब उनके पास कोई नैतिक अधिकार नहीं बचा है
 
• किसान आंदोलन के दोनों मुख्य मांग फ़सल का पूरा दाम और कर्ज़मुक्ति पर भाजपा का घोषणापत्र मौन
 
• नोटबंदी से देश का कमर तोड़ने वाली सरकार की अब वोटबंदी का समय आ गया
भाजपा द्वारा जारी किया गया घोषणापत्र दरअसल एक संकल्प विहीन पत्र है। इसे शून्यपत्र कहना बेहतर होगा, क्योंकि इसमें ना तो कोई दावा है ना ही कोई वादा। ना तो पिछले 5 साल का हिसाब दिया गया है और ना ही अगले 5 साल के लिए कोई भी नई घोषणा या ठोस योजना प्रस्तावित की गई है।
ऐसे समय में जब बेरोज़गारी दर 45 वर्ष के रिकॉर्ड को तोड़ चुकी है। ऐसे समय में जब करोड़ों रोज़गार सृजन करने के वादे पर सरकार में आये नरेंद्र मोदी के राज में जब करोड़ों रोज़गार खत्म हो गए हैं और बेरोज़गारी अपने चरम पर है। ऐसे समय में जब कि बेरोज़गारी देश का सबसे गंभीर मुद्दा है, भारतीय जनता पार्टी के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने युवाओं के लिए रोज़गार का ज़िक्र तक नहीं किया। शायद भारतीय जनता पार्टी को यह बात समझ आ गयी है कि अब उन्होंने बेरोज़गारी पर बात करने का नैतिक अधिकार ही खो दिया है।
ये भी कहा जा सकता है कि मोदी जी अपनी ग़लतियों से सीखते हैं। पिछली बार करोड़ों नौकरियों का वादा करना इनके गले की फांस बन गया। देना तो दूर पौने पाँच करोड़ रोज़गार खत्म हो गए और बेरोज़गारी दर ने पिछले सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए। तो इसलिए, सारा टंटा खत्म करते हुए मोदी जी ने इस बार नौकरियों की बात ही नहीं की!
“भारतीय जनता पार्टी का “संकल्प पत्र” किसानों को ठेंगा दिखाने की कोशिश है। क्यूंकि यह घोषणा पत्र उन दोनों मांगों पर मौन है जो किसान आंदोलनों ने पिछले 2 साल से एक स्वर में उठाई हैं: फ़सल का पूरा दाम और कर्ज़ मुक्ति। कर्ज़ में डूबे किसान की कर्ज़ मुक्ति के सवाल पर इस घोषणापत्र में एक शब्द भी नहीं कहा गया है। बीजेपी साफ कह रही है कि इस सवाल पर वह कुछ नहीं कर सकती, और आगे कुछ करने का उसका इरादा भी नहीं है। किसानों को फ़सल का दाम दिलाने के बारे में भी इस घोषणापत्र में कुछ नहीं कहा गया है। ना एमएसपी ना स्वामीनाथन आयोग ना सरकारी खरीद के बारे में एक भी शब्द है। बस इशारा किया गया है कि बाजार से किसान को सही दाम मिल सके इसके लिए “प्रयास किया जाएगा”। यानी कि इस सवाल से भी बीजेपी पूरा पल्ला झाड़ रही है।
इन दोनों मुद्दों पर बीजेपी की चुप्पी और भी गौरतलब है क्योंकि प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने कर्ज़ मुक्ति और किसानों को फ़सल का उचित मूल्य दिलवाने के लिए नई व्यवस्था के बारे में ठोस घोषणाएं की हैं। आशा की जा रही थी कि बीजेपी कम से कम इतनी या उससे बेहतर घोषणा करेगी। लेकिन इन दोनों सवालों पर चुप्पी रख बीजेपी ने अपनी मंशा जाहिर कर दी है।
खेती किसानी के सवाल पर इस घोषणापत्र में पुरानी बातों और जुमलों को दोहरा भर दिया गया है। किसान की आय  2022 तक दुगनी करने के “प्रयास” करने को दोहरा दिया गया है, बिना यह बताएं कि पिछले 3 साल में आय कितनी बड़ी, बिना इसका हिसाब दिए कि अगले 3 साल में कैसे बढ़ेगी। फ़सल बीमा योजना को स्वैच्छिक बनाने की घोषणा का मतलब है कि सरकार ने मान लिया है कि इस योजना को जबरदस्ती लागू किया जा रहा था, कि किसान इसके विरोध में हैं। यह घोषणा फसल बीमा को समाप्त करने की घोषणा है। उधर 68 सिंचाई योजनाओं को जल्दी पूरा करने की बात करके बीजेपी ने मान लिया है कि जिन 99 योजनाओं को पूरा करने का संकल्प मोदी सरकार ने लिया था उनमें से सिर्फ 31 ही अभी तक पूरी हो पाई है।
किसान सम्मान निधि योजना को बचे हुए 10 से 15% किसानों पर लागू करने की बात कही गई है। लेकिन इस योजना के सबसे बड़े दोष को ठीक करने का जिक्र भी नहीं है। इस सम्मान निधि का फायदा बटाई ठेके पर काम करने वाले या भूमिहीन किसान को नहीं मिलता। उन्हें इसमें शामिल करने का कोई प्रस्ताव नहीं है।
बीजेपी के 2014 के मेनिफेस्टो में किसान को पेंशन की बात को दोहरा दिया गया है, बिना यह बताए कि पेंशन कितनी होगी, कब से दी जाएगी। जाहिर है या तो कुछ होगा नहीं या फिर मजदूरों की तरह किसानों को भी कहा जाएगा कि वह हर महीने अपनी भविष्य निधि में पैसा डालें जिससे अंत में उन्हें कुछ मिलेगा और इसे पेंशन का नाम दे दिया जाएगा।
बाकी इस घोषणापत्र में तमाम सरकारी योजनाओं के नाम और आंकड़े ठोस दिए गए हैं जिन से किसान को न कुछ मिला है ना कुछ मिलेगा।
इस घोषणा पत्र के माध्यम से बीजेपी साफ संदेश दे रही है: “हमने पिछले 5 साल में तुम्हारे साथ जो किया वैसा ही अगले 5 साल भी करेंगे पसंद आया तो वोट दे दो नहीं तो हमें परवाह नहीं।” स्वतंत्र भारत की सबसे असंवेदनशील सरकार की इस बेरुखी और अहंकार को तोड़ने की जिम्मेदारी अब किसानों और नौजवानों की है। नोटबंदी से देश कमर तोड़ने वाली सरकार की अब वोटबंदी का समय आ गया है।

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