प्रेस विज्ञप्ति, 10 नवम्बर, 2019
स्वराज इंडिया, दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट का अयोध्या फैसले पर स्वराज इंडिया का बयान
बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि विवाद पर लंबे समय से चले आ रहे मुकदमे पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है। संविधानिक लोकतंत्र में हर नागरिक का कर्तव्य है कि शीर्ष अदालत द्वारा विधिसम्मत प्रक्रिया का पालन करते हुए सर्वसम्मति से लिए गए इस फैसले को न्यायिक समीक्षा के विकल्प को खुला रखते हुए स्वीकार करे। स्वराज इंडिया सभी देशवासियों और समुदायों से न्यायालय के फैसले को सहज भाव से स्वीकार करने की अपील करता है, चाहे वे न्यायालय के आदेश से सहमत हों या नहीं।
आदेश को स्वीकार करने के साथ साथ इसकी खामियों, अंतर्विरोधों और विसंगतियों पर गौर करना भी जरूरी है। भीड़ द्वारा बाबरी मस्जिद गिराए जाने को ग़ैरकानूनी ठहराते हुए भी सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश द्वारा इस कृत्य को वैधता दी है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने विवादित भूमि पर किसी एक पक्ष के दावे को पूर्ण रूप से नहीं माना, फिर भी सारी विवादित भूमि एक पक्ष को सौंप दी है। यह फैसला दोनों पक्षों में मध्यस्थता करने की नीयत दिखाता है, लेकिन एकतरफा आदेश के चलते दोनों पक्षों को संतुष्ट करने में असफल रहा है। वक़्फ़ बोर्ड सहित सभी मुस्लिम पक्षकार एक अलग जगह पर पांच एकड़ जमीन के प्रस्ताव को नामंजूर कर चुके हैं। कोर्ट के इस फैसले में कहीं न कहीं बहुसंख्यकवाद की परछाई दिखाई दे रही है जो देश के लिए शुभ नहीं है।
तमाम विसंगतियों और खामियों के बाबजूद हम सबको इस फैसले को अब स्वीकार कर लेना चाहिए ताकि लंबे समय से चले आ रहे इस झगड़े को अब समाप्त किया जा सके। इस विवाद को पूरी तरह खत्म करने के लिए यह जरूरी होगा कि उच्चतम न्यायालय को अब उन दोषियों को सज़ा दिलाने में सक्रियता दिखानी चाहिए जो बाबरी मस्ज़िद को ढहाने में शामिल थे।
हम दिल से उम्मीद करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय इस विवाद और ऐसे तमाम अन्य विवादों पर भी एक पूर्णविराम लगाएगा। साथ ही सरकारें, न्यायपालिका और हमारे समाज से हमारी आशा है कि संसद द्वारा 1991 में पारित उस “प्लेसेज ऑफ वर्शिप कानून” का सब पालन करेंगे जिसमें धर्मस्थलों की 15 अगस्त 1947 की स्थिति मानी जाए।
यह वक़्त हम सबके लिए सोचने का भी समय है। यह उन लोगो लिए भी आत्मचिंतन का वक़्त है जो कल तक कहते थे कि आस्था का सवाल कानून से ऊपर होता है वरना वो न्यायिक फैसले को नहीं स्वीकारेंगे।
आज हम सबको धर्मनिरपेक्षता के नाम पर देश में हुई राजनीति की कमजोरियों को भी उजागर करने की जरूरत है। यह क्षण हमारी सेक्युलर राजनीति पर पुनर्विचार कर नए सिरे से गढ़ने का भी वक़्त है।
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